अंग्रेज़ी से अनुवाद : गीत चतुर्वेदी
उस दिन स्कूल से घर लौटने के बाद, मैंने अपनी सारी किताबें फ़र्श पर यहाँ-वहाँ फेंक दीं। किसी ने पलटकर मेरी ओर देखा तक नहीं।
अम्मा सिर झुकाए, हंसिए से सब्ज़ी काट रही थी। मेरे बड़े भाई कहीं नज़र नहीं आ रहे थे। मेरी बड़ी बहन अपनी संगीत वाली नोटबुक खोलकर जाने क्या बुदबुदा रही थी। मेरी छोटी बहन, जिसने अभी मुँह तक नहीं धोया था, नन्हे क़दमों से मेरे पास आई, अपना हाथ मेरे मुँह में डाल दिया और फिर चली गई। ठीक उसी वक़्त मैंने घोषणा की, ‘‘आज के बाद से मैं माँस नहीं खाऊँगा । अब से सिर्फ़ शाकाहारी भोजन करूँगा ।’’
इसके बावजूद, अम्मा ने मेरी तरफ़ नज़र उठाकर नहीं देखा। तब मैं आठ साल का था।
Artwork – Rashmy, 2024
मेरे शिक्षक, जो बालों को गोलकर पीछे चोटी बनाते थे, उस दिन उन्होंने कक्षा में एक कहानी सुनाई थी, जो मेरे मन पर छप गई थी।
‘‘बिना एक भी वाक्य समझे, हमने उस दिन भी थिरुक्कुरुल की रचनाएँ कंठस्थ कीं और उनका सस्वर पाठ किया। उसके बाद मेरे शिक्षक ने कहानी सुनाई। एक बार मेरे शिक्षक समुद्र में गिर गए थे। उन्हें तैरना आता था, लेकिन वह घायल थे। उनके ख़ून की एक बूँद पानी में गिर गई। शार्क मछलियाँ तेज़ी से उनकी ओर आने लगीं। शार्क पौना मील दूर से ही ख़ून सूँघ लेती हैं। उनके दाँतों की चार पंक्तियाँ होती हैं। लगता है, जैसे कोई दाँत टूट गया, तो उसकी जगह दूसरा दाँत आ जाता है। अपने पंखों को प्रार्थना की मुद्रा में हाथों की तरह जोड़कर, शार्क मछलियों ने मेरे शिक्षक के चार चक्कर लगाए और वहाँ से चली गईं। पता है, ऐसा क्यों हुआ? यह सब हुआ थिरुक्कुरुल की उन पंक्तियों के कारण, जिसमें लिखा है- जो व्यक्ति प्राणिहत्या नहीं करता और माँस नहीं खाता, सारे सजीव उसके सामने प्रार्थना की मुद्रा में हाथ जोड़ते हैं।’’
मेरा छोटा भाई ढीठ है, ज़बान बहुत चलाता है।
उसने पूछा, ‘‘शार्क मछलियों को यह कैसे पता चला कि शिक्षक शाकाहारी हैं। चार पंक्तियों वाले दाँतों से पकड़कर उन्होंने शिक्षक को चीर क्यों नहीं डाला?’’
‘‘अरे बुद्धू, वे ख़ून सूँघते-सूँघते वहाँ तक आई थीं। क्या उन्हें पता नहीं चल गया होगा कि यह शाकाहारी ख़ून है। चलो भागो यहाँ से!’’ मैंने उसे धकेल दिया।
चिढ़कर उसने कहा, ‘‘शार्क मछलियों को न केवल सूँघना आता है, बल्कि वे थिरुक्कुरुल को भी जानती हैं।’’
जब मैं रात को खाना खाने बैठा, एक अचंभा मेरी प्रतीक्षा कर रहा था। हमारे परिवार में सात लोग थे। सब लोग अपनी भरी हुई थाली लेकर फ़र्श पर बैठे थे। उनकी थालियों से फिश करी की मनमोहक सुगंध आ रही थी। उनकी थालियों से कुछ दूर, फ़र्श पर केले का पत्ता बिछा हुआ था। उस पर इडियप्पम, सांबल और बैंगन की सब्ज़ी रखी थी। मैंने अम्मा को देखा। उसने सिर हिलाकर मुझे खाना शुरू करने का इशारा किया। इस तरह मैं शाकाहारी बन गया।
तब से अम्मा मेरे लिए अलग से खाना बनाने लगी। मेरे लिए अलग कड़ाही, अलग बर्तन, केले का पत्ता भी सबसे अलग। अगर मैं कहूँ कि वह मेरे लिए चूल्हा भी अलग इस्तेमाल करती थी, तो इस पर विश्वास कर पाना मुश्किल होगा। मेरे शाकाहारी भोजन के लिए ख़ासतौर पर रखे नारियल के छिलके से बने कलछुल को अगर ग़लती से भी मेरी बहन माँसाहारी भोजन परोसने के लिए इस्तेमाल कर लेती, तो माँ उसे फेंक देती और नया ख़रीदकर लाती।
घरवालों के बीच मेरा क़द अचानक बढ़ गया था। खाना खाते समय माँ जिस तरह मेरा अतिरिक्त ध्यान रखती थी, उससे बाक़ी लोगों को चिढ़ मचती थी। एक दिन अय्या ने तो अम्मा से कह भी दिया, ‘‘इसकी टँगड़ी पर सटासट चार छड़ी मारने के बजाय तुम इसे बिगाड़ रही हो।’’
अम्मा ने जवाब दिया, ‘‘शिक्षक ने सही बात तो कही है। प्राणिहत्या पाप नहीं है? अगर मैं इसे रोकूँगी, तो मुझे पाप लगेगा।’’
Artwork – Rashmy, 2024
जब से शाकाहारी बना, मेरी कीर्ति लगातार बढ़ती रही। जब पड़ोसी हमारे घर आते, माँ मेरा गुणगान सुनाए बिना उन्हें जाने न देती। वह मेरी प्रशंसा ऐसे करती, जैसे मैंने स्कूल में पहला पुरस्कार जीत लिया हो। वह कहती, ‘‘ऐसा है कि अगर कोई शाकाहारी भोजन करता हो, तो शार्क मछलियाँ तक उसकी पूजा करने लगती हैं। इसके शिक्षक ने यही बताया है।’’ इस बात से घर में कोहराम मच गया था। चिढ़े हुए तो सब थे, मेरे भाई ने उस चिढ़ को हरकतों में तब्दील कर दिया था।
मेरे सामने बदन ऐंठकर, हाथ लहराकर वह कहता, ‘‘ओहो! आज तो हमारे लिए रिबन फिश बनी है। और इस बेचारे के लिए हरे केले की तरकारी!’’ और फिर अपना पेट पकड़कर ज़ोरों से हँसने लगता। अगले रोज़ कहता, ‘‘अरे वाह, हमारे लिए झींगा फ्राई। और इसके लिए सरसों की पत्ती फ्राई। बेचारा!’’
किसी दिन, मुझसे दूर खड़े हो, वह मेरी तरफ़ करके अपना पिछवाड़ा हिलाता। फिर पास आकर अपना पेट चारों ओर गोल-गोल घुमाता। मैं उछलकर उसका हाथ पकड़ लेता और उसे धमकाता। जब मैं उसे छोड़ता, तो वह ऐसे तेज़ी से अंदर भागता, जैसे आकार मापने वाले टेप की रील खुल गई हो।
‘‘तुम बेचारे! तुम्हारे लिए कद्दू बना है। हाथ से अच्छी तरह मसलना, फिर खाना। हमारे लिए तो बकरी का मीट बना है।’’
यह मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैंने जो भी प्रसिद्धि अर्जित की थी, उसे वह नष्ट कर रहा था।
एक दिन अम्मा, दोनों हाथों से छलनी हिलाकर आटा छान रही थी। सही मौक़ा था! उसके दोनों हाथ काम में उलझे थे, मैं समझ गया था कि उस समय वह मुझे मार तो नहीं सकती थी।
मैंने भिखारियों की तरह आवाज़ बनाते हुए शिकायती लहजे में अम्मा से कहा, ‘‘उन लोगों के लिए मटन करी और मेरे लिए सिर्फ़ कद्दू?’’
मैं बोलता रहा, अम्मा ने कोई जवाब नहीं दिया, पूरी सावधानी के साथ वह आगे की ओर झुककर आटा छानती रही ताकि वह उसके शरीर पर न गिर जाए।
इससे मेरी हिम्मत बढ़ गई। ‘‘अगर उन्हें मीट मिलेगा, तो मुझे आलू चाहिए।’’ उन दिनों आलुओं की क़ीमत ज़्यादा थी और उनका स्वाद बेमिसाल था। ‘‘अगर उनके लिए फिश करी बनेगी, तो मेरे लिए बैंगन की तरकारी बनेगी। अगर उनके लिए झींगा फ्राइ बनेगा, तो मेरे लिए केला फ्राइ बनेगा। केकड़ा बनेगा, तो मेरे लिए सहजन की फलियाँ बनेंगी।’’ मैंने एक लंबी सूची बनाई और भात की लई से उसे दीवार पर चिपका दिया। अम्मा ने उस तरफ़ देखा, पर कुछ कहा नहीं।
उसके बाद, भले कोई बड़ा बदलाव न हुआ हो, पर मुझे मिलने वाले खाने में थोड़ा-सा सुधार हो गया। फिर भी, कई बार मेरा दिमाग़ घूम जाता था। एक दिन लकड़ी का फाटक खोलकर जैसे ही मैं घर में घुसा, पके हुए केकड़े की सुगंध मेरे नाक से घुसी और सीधे मेरे पेट में चली गई। मेरे मुँह में पानी आ गया। मुझे याद है, कैसे अम्मा केकड़े के पैरों का छिलका उतारकर उसका माँस मुझे देती थी और मैं खाता था। मैं दौड़ा-दौड़ा रसोई में पहुँचा। अगर अम्मा एक बार कह देती- ‘‘केकड़ा बनाया है। इसकी टाँगें तोड़कर माँस तुझे देती हूँ। आ जा, खा ले’’ – तो मेरा संकल्प टूटकर चूर-चूर हो चुका होता। जैसे ही अम्मा ने मुझे देखा, उसने कड़ाही पर ढक्कन लगा दिया, जैसे उसने किसी बेहद सम्मानित व्यक्ति को देख लिया हो और न चाहती हो कि केकड़े की गंध उसकी नाक तक पहुँचे। जैसा कि मैंने सूची में लिखा था, दूसरे चूल्हे पर सहजन की फलियाँ पक रही थीं।
एक दिन अम्मा के सामने एक भारी मुसीबत आ गई। हमारे गाँव में मटमैली कटलफिश बड़ी मुश्किल से मिल पाती थी। उसका स्वाद भी एकदम ही अलग होता था। अम्मा कमाल कटलफिश बनाती थी। अय्या कभी अम्मा के बनाए खाने की प्रशंसा नहीं करती थी, लेकिन जब कभी वह कटलफिश बनाती, वह उसकी ख़ूब प्रशंसा करती। उस दिन अय्या बड़े जतन से गाँव से कुछ कटलफिश खोजकर लाई थी और अम्मा ने अपना सारा हुनर लगाकर उसे बनाया था। कटलफिश की करी को अलहदा स्वाद देने के लिए उसमें सहजन की दो मुट्ठी पत्तियाँ मिलाने की दरकार थी। अम्मा ने आसपास का पूरा इलाक़ा छान मारा था ताकि उसे सहजन की पत्तियाँ मिल सकें। रसोई से जैसी सुगंध आ रही थी, उसी से अंदाज़ा लग रहा था कि कटलफिश शानदार बनी होगी। अम्मा व्यंजन बनाते समय उन्हें कभी चखती नहीं थी। वह सुगंध से ही पता कर लेती थी कि उसका स्वाद कैसा होगा।
जिस दिन अम्मा कटलफिश बनाती, उस दिन वह दूसरा कुछ नहीं बना पाती थी। सिर्फ़ कटलफिश करी और सफ़ेद भात। तभी, लोग करी का पूरा स्वाद ले सकते थे। ऐसे दिनों में अम्मा एक कटोरा चावल अतिरिक्त पकाती थी क्योंकि सब लोग अपनी भूख से ज़्यादा खाते थे। जब अम्मा ने पूरी रसोई बना ली, तब अचानक उसे याद आया कि वह मेरे लिए तो कुछ बनाना भूल गई है। उसे दीवार पर चिपकी सूची देखी। उसमें कटलफिश का नाम नहीं था। वह एकदम परेशान हो गई। क्या बनाएँ? समय निकला जा रहा था।
उस दोपहर, जब सब लोग खाना खाने बैठे, अम्मा ने केले के हरे पत्ते पर सफ़ेद भात और उस पर कुछ ख़ास तरह की करी परोस कर मुझे दी। मेरा छोटा भाई, जो मेरी बग़ल में ही बैठा था, उसने टूटी किनारी वाले मेरे चीनी मिट्टी के कटोरे पर अपना हक़ जमा लिया था। ऐसा लग रहा था, जैसे पूरी भीड़ खाना खा रही हो, सब लोग आवाज़ें निकाल-निकाल कर कटलफिश का भरपूर स्वाद ले रहे थे। मेरे पत्ते पर क्या परोसा गया था, मुझे पता ही नहीं था। मैंने उससे पहले उस अनाम व्यंजन को कभी चखा तक नहीं था। मैंने जी-भर कर खाया। आठ साल की उम्र तक मैंने वैसा स्वादिष्ट व्यंजन कभी नहीं खाया था। न उससे पहले, न ही उसके बाद में। करी में कोई तो चीज़ ऐसी थी, जो कटलफिश की तरह चौकोर टुकड़ों में कटी हुई थी। वह नरम थी और खिंची हुई-सी भी। काटने के बाद उसे देर तक चबाना पड़ता था, इसलिए उसके स्वाद में इज़ाफ़ा हो गया था। जैसे कि कटलफिश! वैसा ही स्वाद और रंगरूप! मुझे इस बात पर यक़ीन ही नहीं हो पा रहा था। वह स्वाद मेरी जीभ पर हमेशा के लिए बस गया। उसके बाद, मैंने अपने पूरे जीवन में वैसा स्वाद दुबारा नहीं महसूस किया।
Artwork – Rashmy, 2024
मेरी सल्तनत अगले कुछ बरसों तक इसी तरह चलती रही। फिर अम्मा चल बसी। दस साल बाद, मेरी बड़ी बहन ने यह राज़ खोला कि उस दिन असल में हुआ क्या था।
उस दिन अम्मा बौखलाई, पगलाई हुई-सी रसोई से बाहर निकली थी। समय निकला जा रहा था। वह तय नहीं कर पा रही थी कि मेरे लिए क्या बनाया जाए। उसे जो कुछ पकाना था, उसका कटलफिश के समकक्ष होना ज़रूरी था। हमारे घर से लगी ज़मीन पर नारियल के 20-25 पेड़ थे। माँ ने अलग-अलग पेड़ से 12 कच्चे नारियल तुड़वाए। फिर उसने ख़ुद ही उन सबको काटा और उन्हें अच्छी तरह जाँचा-परखा। कुछ के भीतर पानी और मलाई की पतली तह थी, जोकि अभी बन ही रही थी। कुछ भीतर से सख़्त हो चुके थे, बिल्कुल तैयार नारियल की तरह। अम्मा ने एक नारियल ऐसा खोज निकाला जो भीतर से, न तो बेहद नरम था न ही बेहद सख़्त। माँ ने कुरेदकर उसका गूदा निकाला। वह चमड़े की गद्दीदार तह जैसा था। उसने उसे पाँच बार छुआ और आश्वस्त हुई कि छूने में यह बकरी के कान जैसा है, न तो कठोर है और न ही एकदम लचीला। उसने उसे चौकोर टुकड़ों में काटा और अपने हुनर का इस्तेमाल कर कटलफिश करी की तरह स्वादिष्ट करी बनाई।
उस दिन जब सब खाना खाने बैठे थे, मेरी माँ ने मुझे वही परोसकर दिया था। मैंने पहली और अंतिम बार वह करी खाई थी। उसके बाद वैसी कोई चीज़ नहीं खाई क्योंकि किसी को पता ही नहीं था कि ऐसी भी कोई डिश हो सकती है। वह ग़ायब हो गई थी, जैसे फलपाखी पैदा होने के दिन ही ग़ायब हो जाती है।
आज मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ और उसके बारे में सोचता हूँ। एक माँ अपने आठ साल के बच्चे को ख़ुश करने के लिए किस तरह, हर संभव कोशिश कर सकती है, वह भी बिना एक शब्द बोले! इस दुनिया में, बच्चे भले एक-दूसरे से अलग हुआ करते हों लेकिन सारी माँएँ एक-सी होती हैं।
Artwork – Rashmy, 2024
* * *
बेहद उम्दा भाव संसार… सीधे हृदय तल की अंतस्तल को अपने मोहपाश में बांध लिया…
दिल की गहराइयों से मेरे प्रिय कवि व साहित्यकार गीत चतुर्वेदी जी को आभार प्रणाम और स्नेह कि इतनी सुंदर कहानी का भाव चित्र हम तक पहुंचाया
पुनः स्नेहिल आभार
अत्यंत मार्मिक ।शुक्रिया आपका इसे हमारे लिए पठनीय बनाने की लिए ।प्रिय गीत
शानदार, अदभुत है,एक समय के लिए मैं दक्षिण भारत पहुंच गया जैसे मेरी ही कहानी हो
The way the writer express his feelings and emotions is unexplainable.
Love the way you explain
To The Writer
मालगुडी days के दिनो की याद आ गई
बहुत प्यारी कहानी है, मुझे पढ़ कर अति प्रसन्न हुई ☺️
Oh ,Mai v sakahari hun ,ab pura pariwar sakahari h,phle Mai or pita ji hi kewal sakahari the,Mai jb v machhli ko fry krke khati thi apne sath lambi si stick rkhti thi kyuki Mai bhut chidati tha ,ki ye kya kha rhi ho ye v koi khane ki chij h chhiii….
Mai itna presan kr deta tha bol bol ka ki bta ny krta ,kair avi v chicken ki taste to ny but eggs ka taste mujhe khichti h.
Kyuki mujhe yad h jb mai 4 ,5vi class me tha to pitaji school se 2 fried ande late the mere or meri chhoti bhan ke liye ,bhut maza aata tha .yh kahani behd khubsurat h Mai bta ny skta ki kitni sunder kahani h ,bhut bhut dhanyawad geet sir.
Oh ,Mai v sakahari hun ,ab pura pariwar sakahari h,phle Mai or pita ji hi kewal sakahari the,Mai jb v machhli ko fry krke khati thi apne sath lambi si stick rkhti thi kyuki Mai bhut chidati tha ,ki ye kya kha rhi ho ye v koi khane ki chij h chhiii….
Mai itna presan kr deta tha bol bol ka ki bta ny krta ,kair avi v chicken ki taste to ny but eggs ka taste mujhe khichti h.
Kyuki mujhe yad h jb mai 4 ,5vi class me tha to pitaji school se 2 fried ande late the mere or meri chhoti bhan ke liye ,bhut maza aata tha .yh kahani behd khubsurat h Mai bta ny skta ki kitni sunder kahani h ,bhut bhut dhanyawad geet sir.
अपने शिल्प और कथानक की वज़ह से ये कहानी सीधे मन की तह तक पहुंच गई । कहानी और अनुवाद दोनों बेमिसाल हैं। अनुवाद कितने आवश्यक होते हैं ऐसी रचनाओं को कालजयी बनाने में….
बहुत बढ़िया कहानी अनुवाद भी जबरजस्त किया है भाव,भाषा और लोक तीनों साथ साथ चल रहे हैं
बहुत सुंदर अनुवाद ❤
क्या कहूं सर आप बेमिसाल हो।
बेहद प्यारी संवेदनशील कहानी। मन की कितनी ही परतों को उद्वेलित कर रही है। शुक्रिया हम सब तक पहुंचाने के लिए।
बहुत बढ़िया अनुवाद है सर, उतनी ही अच्छी कहानी भी।
“सारी मांएं एक जैसी हुआ करती है इस दुनिया में, बच्चे भले अलग हो जाते हो।”
Bahut badia . Mai ek maan hoon aur ye achhe se samjh sakti hoon. Main ek beti bhi hoon aur bachhe ki bhavna ko bhi mehsoos kar sakti hoon. Umda kahani ka bhaav salike se ukera hai aapne
मॉं को ले कर मराठी में एक किताब है
“श्यामची आई” (शाम की मॉं) लेखक साने गुरुजी (श्री पांडुरंग सदाशिव साने) ने अपने बचपन के संस्मरण इस किताब में संजोए है.
मराठी साहित्य में यह किताब एक milestone है.
Very nice padh kar ke acha laga
Padh kar ke acha laga, very nice,me vi sakahari hu
क्या खूब लिखा है
बचपन सजीव हो उठा
मुझे भी मेरी माँ याद ऐज़ गई
This is such a wonderful piece. So so proud of you Geet!
I’m so grateful that I know a person like you who understand the beauty of words so deeply.
आपका लिखा हुआ हमेशा मन की गहराइयों में छाप छोड़ देता है। इस भीतरी स्पर्श के लिए मन कृतज्ञता है।
बहुत सारा आभार और और शब्दों की शक्ति!!!