डागर रसोई: रस और रस्म <br>Volume 2 | Issue 7 [November 2022]

डागर रसोई: रस और रस्म
Volume 2 | Issue 7 [November 2022]

हर घर की एक कहानी होती है और कहानी में होती है एक रसोई, जिस से अक्सर आती है एक आवाज़, 'आह क्या बात है'! भोजन और संगीत के बीच क्या संबंध हो सकता है? किसी पंडित या उस्ताद को यह कहते हुए सुनना कोई आश्चर्य की बात नहीं कि 'वह संगीत कैसे बजाएगा, जिसे ठीक से खाना भी नहीं आता।' उनका अर्थ यह कि ... — बहाउद्दीन डागर
पुष्टकारी, सेल रोटी और नेपाली डायस्पोरा का मीठा सफर<br>Volume 2 | Issue 5 [September 2022]

पुष्टकारी, सेल रोटी और नेपाली डायस्पोरा का मीठा सफर
Volume 2 | Issue 5 [September 2022]

मेरी माँ असम से है. उन्हें 'बिगौती' से खासा प्रेम है, एक व्यंजन जो नवजात बछड़े के जन्म के तुरंत बाद भैंस और गाय के अतिरिक्त दूध से बनाया जाता है. खाने में यह छेना के तरह है, एक प्रकार का पनीर जो भारतीय उपमहाद्वीप से आता है, जिसका उपयोग मशहूर बंगाली मिठाई रसगुल्ला बनाने में किया जाता है. बिगौती मीठी होती है, लेकिन माँ इसमें थोड़ी-सी अधिक शक्कर मिलाना पसंद करती हैं ताकि... — Anshu Chhetri
Amit Kumar-The Milkman <br>Volume 2 | Issue 4 [August 2022]

Amit Kumar-The Milkman
Volume 2 | Issue 4 [August 2022]

In an attempt to trace the milkman from his neighborhood, the narrator looks at the changing social landscape of his village and comes across - cars tied to pegs, benefits of double-toned milk and the discovery that the milk that his village has been drinking, causes acne... — Amit Kumar
Eating in Amritsar-Hindi<br>Volume 2 | Issue 3 [July 2022]

Eating in Amritsar-Hindi
Volume 2 | Issue 3 [July 2022]

1955 में मेरे पिता नेत्रविज्ञान में पीएचडी कर रहे थे। उस दौरान वह इंग्लैंड में रह रहे थे। घर से दूर रहने के कारण उन्हें बेहद अकेलापन महसूस होता था, उन्हें अपने बच्चों की याद आती थी, साथ ही अपनी पत्नी के हाथ से बने खाने की भी। उन्हें कम मानदेय मिलता था, उसके बावजूद एम. एस. बेटॅरी नामक जहाज़ पर सवार होकर उनका परिवार उनके पास पहुँच गया। तब मैं चार साल की थी — नीलम मानसिंह चौधरी
साँचों का किस्सा<br>Volume 1 | Issue 11 [March 2022]

साँचों का किस्सा
Volume 1 | Issue 11 [March 2022]

आमों का मौसम पूरे शबाब पर था। यह दृश्य उन्हीं दिनों का है। मेरे पति की माँ- बेला, आँगन में बैठी थी और अपने सामने रखे आमों से भरे टोकरे में से एक –एक आम को बड़ी निपुणता से अपने हाथों के बीच दबा दबाकर आमों का रस निकालती जा रही थी। और फिर उस रस को वह तेल चुपड़े मिट्टी के साँचों में ढारती जा रही थी। रस की एक परत के ऊपर वह दूसरी परत जमाती जा रही थी। जब परत ... — कल्याणी दत्ता
लंगर –‘किसान नहीं तो खाना नहीं’ आंदोलन की धड़कन<br>Volume 1 | Issue 10 [February 2022]

लंगर –‘किसान नहीं तो खाना नहीं’ आंदोलन की धड़कन
Volume 1 | Issue 10 [February 2022]

वह 28 अगस्त का दिन था, जब करनाल के पास बस्तारा टोल प्लाज़ा पर किसान इकट्ठा हो हरियाणा के मुख्यमंत्री एम. एल. खट्टर का विरोध कर रहे थे और पुलिस ने उनपर 5 बार लाठी चार्ज किया था।लाठी के ये प्रहार जानलेवा थे। बहुत सारे किसान घायल हुए। उनमें से एक थे 45 वर्षीय सुशील काजल जो पीठ पर अनेक चोटों के साथ घर पहुंचे। मार के कारण उनका पेट भी बुरी तरह सूज गया था... —अमनदीप संधु
रचने वालों के साथ खाना <br>Volume 1 | Issue 9 [January 2022]

रचने वालों के साथ खाना
Volume 1 | Issue 9 [January 2022]

भूली बिसरी घटनाओं को खाने से जुड़ी यादों के साथ दर्शाने वाला सबसे लोकप्रिय साहित्य, शायद उसी किताब में दर्ज है जिसे मार्सल प्रूस्त ने रेमेंबरन्स ऑफ थिंग्स पास्ट  में शिद्दत से अंकित किया है। 19 वीं और 20वीं सदी के शुरुआती दौर में प्रूस्त ने सात खंडों में इस क्लासिक की रचना की। किताब में चार्ल्स स्वान नाम का नायक, एक बार आयताकार टी केक के एक टुकड़े को खाता है, जिसके बारे में विवरण है कि वह मेडेलीन  से बना है जिसे कुछ समय के लिये नींबू के फूलों से बनी चाय में डुबो कर रखा गया था... —जया जेटली
Bhanukul’s Kitchen Raga-Hindi<br>Volume 1 | Issue 8 [December 2021]

Bhanukul’s Kitchen Raga-Hindi
Volume 1 | Issue 8 [December 2021]

एक जानी-मानी कहावत है- सुबह काशी, शामे अवध और शबे मालवा. यह वह भू-भाग है जहाँ की आबो-हवा प्रदेश के दूसरे भागों की तुलना में शीतल, संतुलित और रम्य है. तो मेरा जन्म ऐसे ‘मालवा’ में हुआ जहाँ की काली माटी भरपूर उपजाऊ है साथ में डग-डग पर पानी भी. मैं जिस परिवेश में जन्मी और पली बढ़ी वहाँ चहूँओर स्वर गुंजायमान थे. जिस तरह संगीत के घरानों की खूबियों को सराहा जाता रहा, उसी तरह अलग-अलग संस्कृति के खानपान का भी ऐसा अनूठा संगम रहा, कि क्या कहा जाए… — कलापिनी कोमकली
मेघबालिका की तलाश में<br>Volume 1 | Issue 6 [October 2021]

मेघबालिका की तलाश में
Volume 1 | Issue 6 [October 2021]

मैंने कविता के प्रेम की वजह से उससे शादी की थी और वह कहती थी कि उसने मेरे खाने को लेकर मुझसे शादी की है। उन तमाम लोकल ट्रेन से की गई यात्राओं के दौरान, जो हमने कॉलेज के दिनों में साथ-साथ तय की थीं वह यही बात बार बार कहा करती थी-मेरे खाने का डब्बा, मेरी दूसरी सबसे आकर्षित करने वाली बात थी उसके लिए; और पहली आकर्षित करने वाली बात तो निस्संदेह मेरा उस खाने को अपने हाथों से बनाना था! — अभिषेक मजूमदार
पुडिंग, सलाद और सारू जैसी ज़रूरी बातें <br>Volume 1 | Issue 4 [August 2021]

पुडिंग, सलाद और सारू जैसी ज़रूरी बातें
Volume 1 | Issue 4 [August 2021]

एक बार एक विद्यार्थी गुरूकुल में पढ़ने जाता है। गुरु अपनी पत्नी को निर्देश देते हैं कि उसे सिर्फ चावल और अरंडी का तेल दिया जाये। विद्यार्थी इसे गुरु का आदेश मान भक्त-भाव से ग्रहण करता है... — पुष्पमाला एन.
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