लंका में खान-पान
Volume 4 | Issue 9 [January 2025]

जब मैंने फ़रवरी 2003 में त्रिची से कोलंबो जाने के लिए श्रीलंकन एयरलाइन्स की उड़ान पकड़ी, तो मुझे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि वहाँ मुझे किस तरह का भोजन मिलेगा। मैंने यही सोचा था कि द्वीपवासियों का आहार तमिलनाडु के खाने से मिलता-जुलता होगा। आज की तरह इंटरनेट से जानकारी हासिल करने की सुविधा तब नहीं थी, इसलिए मुंबई में रहने वाले किसी व्यक्ति के लिए इस द्वीप के बारे में अधिक जानना मुश्किल था—सिवाय इसके कि वहाँ की क्रिकेट टीम शानदार थी और वहाँ के लोगों के बोलने का लहजा मोहक था जोकि उनके खिलाड़ियों और कमेंटेटरों के कारण मशहूर हो गया था; और हाँ, वहाँ गृहयुद्ध भी चल रहा ... —अजय कमलाकरन
अंधेरे में ड्राइव और कोयले का धुआँ <br>Volume 4 | Issue 8 [December 2024]

अंधेरे में ड्राइव और कोयले का धुआँ
Volume 4 | Issue 8 [December 2024]

मैं मुम्बई के पवई इलाके़ में रहता हूँ, जो खाने-पीने के शौक़ीन शहरवासियों का हालिया पसंदीदा ठिकाना बन गया है। यहाँ रेस्तरां की भरमार है—पचास से ज़्यादा ही होंगे—और ये सब मेरे घर से पाँच किलोमीटर के दायरे में हैं। यहाँ हर तरह के खाने का स्वाद मिल जाता है, जिनमें सुदूर पूर्व, दक्षिण एशियाई, कॉन्टिनेंटल, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के खान-पान शामिल हैं। इनके अलावा, वे जगहें भी हैं, जो ज़ोमैटो जैसी सेवाओं के ज़रिए घर तक खाना पहुँचाती हैं। नतीजा ये होता है कि जब कभी मैं या मेरी पत्नी बाहर का खाना खाने के बारे में सोचते हैं, तो इतने सारे विकल्प देखकर उलझन में पड़ जाते हैं। आज का पवई 1990 के दशक की शुरुआत वाले... —रोहित मनचंदा
घोनादा की कहानियों के चटोरे सुख<br>Volume 4 | Issue 6 [October 2024]

घोनादा की कहानियों के चटोरे सुख
Volume 4 | Issue 6 [October 2024]

बांग्ला साहित्य में कई ‘दादा’ चरित्र हैंः शारदिंदु बनर्जी ने बारोदा की रचना की, सत्यजीत रे ने फेलूदा की, नारायण गांगुली ने टेनीदा की और प्रेमेंद्र मित्रा ने घोनादा की। घनश्याम दास उर्फ घनादा, या ठेठ बंगाली लहजे में कहें तो घोनादा, अधेड़ उम्र के एक ऐसे इंसान हैं, जिनका दिल बहुत बड़ा है, जो हमेशा घर पर पाए जाते हैं और जो हर समय अपनी क़िस्सागोई के लिए तैयार रहते हैं। आज के दौर में ऐसा किरदार लगभग विलुप्त हो चुका है। घोनादा एक हॉस्टल में रहते हैं, जिसका किराया उनके अनुयायी ख़ुशी-ख़ुशी भरते हैं। यही नहीं, लज़ीज़ खाना खाने के उनके शौक़ को भी पूरा करते हैं। घोनादा पूरा दिन गपशप करते हैं, शाम को पार्क चले जाते हैं और वहाँ जाकर नई मंडली के साथ गपशप करते हैं। उनकी कहानियों में ग़ज़ब की कल्पना होती है,,... — डॉ. रुद्रजित पॉल
ഓട്ട്സിന്റെ രുചിഭേദങ്ങൾ <br>Volume 4 | Issue 5 [September 2024]

ഓട്ട്സിന്റെ രുചിഭേദങ്ങൾ
Volume 4 | Issue 5 [September 2024]

ഓട്ട്സ് എന്ന വസ്തു ആദ്യമായി കാണുവാൻ മുപ്പതുവയസ്സ് കഴിയേണ്ടിവന്നു എനിയ്ക്ക്. എന്താണ് ഓട്ട്സ് എന്നറിയാഞ്ഞിട്ടല്ല. തീർച്ചയായും എനിയ്ക്കതറിയാമായിരുന്നു; ചെറുപ്പകാലത്ത് ഞാൻ വായിച്ചുകൂട്ടിയ പുസ്തകങ്ങളിലെല്ലാം ( മിക്കവാറും ബ്രിട്ടീഷ് ) കുതിരകളെ ഓട്ട്സ് തീറ്റുന്ന രംഗങ്ങൾ ധാരാളമായിരുന്നു. വല്ലപ്പോഴുമെങ്കിലും ചില പട്ടിണിപ്പാവങ്ങളായ കർഷകരും ഓട് മീൽ കഴിക്കുന്നതായും വായിച്ചിട്ടുണ്ട്... — മധുലിക ലിഡിൽ
ओट्स के लज़ीज़ नमकीन पहलू<br>Volume 4 | Issue 5 [September 2024]

ओट्स के लज़ीज़ नमकीन पहलू
Volume 4 | Issue 5 [September 2024]

मैंने तीस साल की उम्र तक ओट्स (जई) नहीं देखा था। ऐसा नहीं है कि मुझे यह न पता हो कि ओट होता क्या था। बिल्कुल पता था, मैंने छुटपन में जितना भी साहित्य (ज़्यादातर ब्रिटिश) पढ़ा था, उनमें घोड़ों को ओट खिलाने के कई प्रसंग आए थे। उनमें कभी-कभी, किसी बेहद ग़रीब किसान परिवार द्वारा ओट्स खाने का ज़िक्र आ जाता था। ईमानदारी से कहूँ, तो ओट्स का उल्लेख कुछ हद तक उबाऊ लगता था। ब्लैक पुडिंग और हैगिस, स्पॉटेड डिक और समर पुडिंग (भले इनमें से कोई ख़राब लगता तो कोई दिलकश) कम से कम दिलचस्प तो... — मधुलिका लिडल
बकरी का कान<br>Volume 4 | Issue 4 [August 2024]

बकरी का कान
Volume 4 | Issue 4 [August 2024]

उस दिन स्कूल से घर लौटने के बाद, मैंने अपनी सारी किताबें फ़र्श पर यहाँ-वहाँ फेंक दीं। किसी ने पलटकर मेरी ओर देखा तक नहीं। अम्मा सिर झुकाए, हंसिए से सब्ज़ी काट रही थी। मेरे बड़े भाई कहीं नज़र नहीं आ रहे थे। मेरी बड़ी बहन अपनी संगीत वाली नोटबुक खोलकर जाने क्या बुदबुदा रही थी। मेरी छोटी बहन, जिसने अभी मुँह तक नहीं धोया था, नन्हे क़दमों से मेरे पास आई, अपना हाथ मेरे मुँह में डाल दिया और फिर चली ... — अप्पादुराई मुत्तुलिंगम
कोलकाता के पाइस होटल<br>Volume 4 | Issue 2 [June 2024]

कोलकाता के पाइस होटल
Volume 4 | Issue 2 [June 2024]

जब मैंने कोलकाता में भोजन और सार्वजनिक खानपान के बारे में अपने शोध-प्रस्ताव पर काम करना शुरू किया था, तब मैं पहली बार ‘पाइस होटल’ नाम से परिचित हुई थी। उससे पहले मैं सिर्फ़ ‘भातेर होटल’, ‘राइस होटल’ जैसे नामों को ही जानती थी, यानी एक ऐसी जगह जहाँ के मेन्यू में चावल एक मुख्य घटक की तरह उपलब्ध होता हो। मैं कोलकाता से लगभग सौ किलोमीटर दूर रहती थी, पाइस होटल में खाना खाने का मेरा पहला अनुभव एक विशेष प्रयोजन के तहत हुआ था : तब मैं स्कूल में पढ़ती थी, ‘किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना’ की प्रवेश परीक्षा देने के लिए मुझे कोलकाता आना पड़ा था, क्योंकि... — सृजिता बिस्वास
60 और 70 के दशक में मद्रास की गर्मियों को पचाना<br>Volume 4 | Issue 1 [May 2024]

60 और 70 के दशक में मद्रास की गर्मियों को पचाना
Volume 4 | Issue 1 [May 2024]

नारियल के पेड़ हमेशा इशारा कर देते थे, बशर्ते आप ध्यान दें। दमघोंटू और जड़ कर देने वाली मद्रास की दोपहरें निरंतर काँव काँव करने वाले कव्वों और सरसराती हवा को भी चुप कराने का माद्दा रखते थे। लेकिन लगभग 3 और 4 बजे के आसपास कुछ क्षणों के लिए आप ताड़ के पत्तों को उदासीन भाव से हिलता डुलता देख सकते थे। आप इसी का इंतजार करते रहते थे, यही वह प्रामाणिक संकेत हुआ करता था जो बताता था कि अब समुद्री हवा बहने लगी है और ... — करपागम राजगोपाल
दादरी में खाने की खोज में: परंपरा से जीविका तक <br>Volume 3 | Issue 12 [April 2024]

दादरी में खाने की खोज में: परंपरा से जीविका तक
Volume 3 | Issue 12 [April 2024]

2000 के दशक में जब मैं पल-बढ़ रही थी तो जाड़े के मौसम में मेरी माँ के बनाये हुए साग और मक्की की रोटी को लेकर मेरी दादी की शिकायतें मुझे खास समझ नहीं आती थीं। मेरे लिए तो साग में भर-भर कर डाला गया मक्खन स्वर्ग-सा था। दालों और सब्जियों के स्वाद में मैं कोई फर्क नहीं जान पाती थी, और अब कहीं जाकर ही अपने खाने का जायका ले पा रही हूँ। जाड़े में, घर पर सुनने को पड़ता था तो सिर्फ अनाज में कथित मिलावट का किस्सा, कीटनाशकों का कहर, और मेरी दादी की यादों भरी रट कि ग्राम्य जीवन ही सारे उम्दा स्वादों की कुंजी है। वह सुनाती कि वह कैसे पड़ोसियों के साथ निकल जाती थी पास की झीलों से ताजी-ताजी उपज जुटाने के लिए, ... — तनिष्का वैश
ओणम सद्या <br>वर्ष 3 | अंक 9 [ जनवरी 2024 ]

ओणम सद्या
वर्ष 3 | अंक 9 [ जनवरी 2024 ]

अगर किसी मलयाली लेखक से कहा जाए कि वह खान-पान के बारे में लिखे, तो वह क्या सोचेगा? अनिवार्यतः इसका उत्तर है, ओणम का त्योहार और उसका सबसे प्रसिद्ध भोज- सद्या ! ओणम आने वाला है, यह अहसास होते ही मन में जो सबसे ख़ास छवि बनती है, वह है केले के ताज़ा पत्ते पर बिछा हुआ शानदार मलयाली सद्या, जिसमें इतने विविध रंग होते हैं, ... — शशि थरूर
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