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Essay by Karpagam Rajagopal
Volume 4 | Issue 1 [May 2024]

DIGESTING SUMMERS IN MADRAS, THE 60s & 70s
Volume 4 | Issue 1 | May 2024]
It was always the coconut trees that signaled it, but you had to pay attention. The oppressive heat and stifling torpor of a summer afternoon in Madras were enough to mute the incessant cawing of crows and still the wind into submission. But around 3 or 4 pm, you could sense the palm fronds stirring listlessly, just for a few seconds. It was what you waited for – a clear indication that the sea breeze was setting in, offering you the only respite you could find till the whole city exhaled its heat…

60 और 70 के दशक में मद्रास की गर्मियों को पचाना
Volume 4 | Issue 1 | May 2024]
नारियल के पेड़ हमेशा इशारा कर देते थे, बशर्ते आप ध्यान दें। दमघोंटू और जड़ कर देने वाली मद्रास की दोपहरें निरंतर काँव काँव करने वाले कव्वों और सरसराती हवा को भी चुप कराने का माद्दा रखते थे। लेकिन लगभग 3 और 4 बजे के आसपास कुछ क्षणों के लिए आप ताड़ के पत्तों को उदासीन भाव से हिलता डुलता देख सकते थे। आप इसी का इंतजार करते रहते थे, यही वह प्रामाणिक संकेत हुआ करता था जो बताता था कि अब समुद्री हवा बहने लगी है और यही राहत लेकर आएगी। वरना तो शहर को दिन भर के इंतज़ार के बाद अपनी पूरी गर्मी को संध्या आकाश में प्रवाहित करना होगा। यह 1960 और 70 के प्रारम्भिक वर्षों का दशक था। मरीना बीच के दक्षिणी छोर पर महात्मा गांधी की मूर्ति हुआ करती थी जिसके …

60-70களில் மெட்ராஸின் கோடையை சமாளித்தல்
Volume 4 | Issue 1 | May 2024]
தென்னை மரங்கள் தான் முதலில் லேசான சமிக்ஞைகளைத் தரும், ஆனால் நீங்கள் அதை கவனமாக உணர வேண்டும். மூச்சை திணறடிக்கும் மெட்ராஸின் வெப்பமும், சோம்பேறித்தனமான கோடை மதியமும், காக்கைகள் கரைவதையும், காற்று அசைவதையும் கூட நிறுத்தி விடும். ஆனால் மூன்று அல்லது நான்கு மணி வாக்கில், தென்னை ஓலைகள் மெதுவாக சில வினாடிகளுக்கு, அசையத் தொடங்குவதை நீங்கள் உணரலாம்…